पुनर्मिलन
तन्हाईयों के आलम में, जब
याद तुम्हारी आती है ।
दुनियाँ की सोती रातों में, मेरी रज़नी जग जाती है॥
दुनियाँ की सोती रातों में, मेरी रज़नी जग जाती है॥
तेरी यादों का अम्बु-स्पर्श, अकुलाई आँखें खोलता है।
फिर अतीतास्मृतियों को, अपने ज़हन में टटोलता है॥
फिर अतीतास्मृतियों को, अपने ज़हन में टटोलता है॥
चिर स्मरणीय कुछ पल-मधुकर, स्मृति-सुमन पे मँडराते हैं।
अपनी मनमोहक गुन-गुन रुत में, स्मृति-रस पी जाते हैं॥
अपनी मनमोहक गुन-गुन रुत में, स्मृति-रस पी जाते हैं॥
पागल सा बना मैं पल-अलि को, अपलक निहारता रहता हूँ।
उन सुखद क्षणों से पुनर्मिलन की, विकल प्रतिक्षा करता हूँ॥
उन सुखद क्षणों से पुनर्मिलन की, विकल प्रतिक्षा करता हूँ॥
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