रविवार, 2 अक्तूबर 2016

पुनर्मिलन



पुनर्मिलन
तन्हाईयों के आलम में,  जब याद तुम्हारी आती है ।  
                   दुनियाँ की सोती रातों में,  मेरी रज़नी जग जाती है॥
तेरी यादों का अम्बु-स्पर्श, अकुलाई आँखें खोलता है।  
                 फिर अतीतास्मृतियों को, अपने ज़हन में टटोलता है॥
चिर स्मरणीय कुछ पल-मधुकर, स्मृति-सुमन पे मँडराते हैं।  
                 अपनी मनमोहक गुन-गुन रुत में, स्मृति-रस पी जाते हैं॥
पागल सा बना मैं पल-अलि को, अपलक निहारता रहता हूँ।  
                उन सुखद क्षणों से पुनर्मिलन की,  विकल प्रतिक्षा करता हूँ॥

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