मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

                                                                   ज़िंदगी 
ज़िंदगी किसको खुली छूट,  यहाँ देती है। 
ज़िम्मेदारियों का कड़वा, घूँट पिला देती है॥ 
कोई भी न जा सकता इसके परिधि से परे, 
झटके में याद, छठी का दूध दिला देती है॥ 

हज़ारों ख़्वाहिशों को चंद, चाहतों में सिमट देती है। 
कभी-कभी तो हालातों से, खुद ही निपट लेती है॥ 
भरते हैं हम जब भी कुलाँचे, कुरंग की तरहा, 
ज़िंदगी शेर की जानिब, हमको झपट लेती है। 

कभी बे-रंग कभी, सतरंगी रंग लेती है। 
हर मोड़ पर अनौखा, अनुभव संग देती है॥ 
बुझानी पड़ती है कभी, प्यास ओस चाटकर, 
ज़िंदगी दामन में कभी, समंदर को सिमेट देती है॥ 

ज़िंदगी तेरा काम है, तू रंग बदलती रह।
जब जो चाहे तू, वो चाल चलती रह॥ 
हम भी कर्मवीर हैं, अपने हुनर में दम रखते हैं,
हम पात-पात और तू डाल-डाल चलती रह ॥ 

जी भर कर ले कोशिश मुझे, बे-नूर करने की । 
चल ले कुटिल चालें, मुझे मज़बूर करने की॥ 
मेरे होंसलों की आग, अभी तूने देखी कहाँ हैं,
मैंने कर ली है पूरी तैयारी, तुझे मशहूर करने की ॥ 

'प्रकाश माली'

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