मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016


 विजयदशमी मंगलमय हो!

"मन की लंका में पल रहा, विकारी-रावण जल जाए । 
हो रही कैद 'शक्ति-सीता', उत्साही राम से मिल जाए॥ 
आपके जीवन में चहुँ ओर, समृद्धि रामराज्य सी हो, 
मन की रणभूमि में चल रहे, हजारों युद्ध थम जाए ॥"

रविवार, 2 अक्तूबर 2016

मेरे रोम–रोम में सावन सा छा जाता है....


        मेरे रोम–रोम में सावन सा छा जाता है
तेरे हुश्न के निखार का खयाल,  जब दिल में आता है ।
                      मेरे बदन के रोम रोम में,  सावन सा छा जाता है ॥
तेरी अज़नबी अदाएं,  बनकर तस्वीर घूमती हैं।
                     मेरे मन की  कल्पनाएं, तुम्हें अनगिनत बार चूमती है॥ 
मेरा दिल लगता है तड़पने, तेरा सामिप्य पाने को ।
                    तेरी ज़ुल्फों में हाथ डालकर, आँखों से आँख मिलाने को॥
पर जब तुम पास में होती हो, रुक जाती है मेरी सांसें।
                    मिल नही पाती नज़रों से नज़र, झुक जाती है क्यूँ आँखें॥
ये कितना नाज़ुक रिश्ता है, कुछ मेरे समझ नहीं आता है।
                   तेरे हुश्न के निखार का खयाल, जब दिल में आता है ।।
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कशिश आज़ भी है........



कशिश आज़ भी है........
कशिश आज़ भी है, मेरे दिल में तुम्हें पाने की ।
                   तेरी धड़कनों की आवज़ तेरे ज़िस्म की खुशबू लेने की॥
कैसे यौवन-पुष्प अपनी ही, सौरभ में सिमट रह पायेगा ।
                  कोंपल सा कोमल वदन, कैसे घूँघट में छिप रह पायेगा।।

देखो कितना है अमित तुममें, यह आप्लावित सौंन्दर्य।।
                 लोलुप है इसको पाने को,मानव क्या सुर गंधर्व ॥
क्या वो वादे वो कसमें तुमनें दर्द देने को खाई  थी।
                मेरे दिल के हिम-पर्वत में तुमने क्यूँ आग लगाई थी॥

क्यूं मेरी जीवन सरिता में तुम, यौवन पुष्प बहाती हो।।
               अपने तन की खुशबू से अम्बु, उद्वेलित कर जाती हो।।
सोचो क्या यह पुष्प अनवरत, यूँ ही तैरता जायेगा ॥
              पग-दो पग आगे ये प्रेम-भँवर में, आप्लावित में जायेगा॥
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तुम चुपके चुपके आ जाना......


         तुम चुपके-चुपके आ जाना

अम्बर की चुनरी में अनगिनत, सितारे जब झिलमिलाते हों।
              स्वर्णिम चांदनी जब अपने,  सम्पूर्ण यौवन से चमकती हो।।
चन्द्र-प्रभा से आहत , जब तुम्हारी रजस्वला मचलती हो ।  
            निर्झर से रिसता  नीर,  जब कल-कल स्वर में गाता हो ।।
फूलों का गुल गुलशन पराग, खुशबू से वसुधा नहलाता हो।
             मधुमास प्रकृति के रग-रग में, बसंत बहारें महकाता हो ।
तुम चुपके-चुपके आ जाना, मन्मथ जब तुम्हें सताता हो ।।
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पुनर्मिलन



पुनर्मिलन
तन्हाईयों के आलम में,  जब याद तुम्हारी आती है ।  
                   दुनियाँ की सोती रातों में,  मेरी रज़नी जग जाती है॥
तेरी यादों का अम्बु-स्पर्श, अकुलाई आँखें खोलता है।  
                 फिर अतीतास्मृतियों को, अपने ज़हन में टटोलता है॥
चिर स्मरणीय कुछ पल-मधुकर, स्मृति-सुमन पे मँडराते हैं।  
                 अपनी मनमोहक गुन-गुन रुत में, स्मृति-रस पी जाते हैं॥
पागल सा बना मैं पल-अलि को, अपलक निहारता रहता हूँ।  
                उन सुखद क्षणों से पुनर्मिलन की,  विकल प्रतिक्षा करता हूँ॥

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तेरे चहरे पे जब ये उदासी हो...........



तेरे चहरे पे जब ये उदासी हो


जानता हूँ कि तुम, मेरी मोहब्बत की प्यासी हो।
बहुत तड़पता हूँ मेरी जाँ, तेरे चहरे पे जब ये उदासी हो॥
हम चाह करके भी एक दूज़े को चाह ना सके ।
क़ातिल ज़माने की निग़ाहों को भा ना सके ।।
तेरे प्यार की तड़प का सागर, बर्फ का पठार बन गया है।।
सह-सह कर दिल ज़ख्म, दर्दों का आवास बन गया है॥
क्या कहूँ ये निस्पृह दिल, मोहब्बत को नहीं समझते हैं।
सुख-दुःख के साथी प्यार को वासना का नाम देते है॥
नाम क्या दूँ इस जहाँ को, जिसकी संवेदनायें सियासी हो ॥
बहुत तड़पता हूँ मेरी जाँ, तेरे चहरे पे जब ये उदासी हो॥
     
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