रविवार, 2 अक्टूबर 2016

वियोग




निःस्तब्ध गंधवह त्रासवर्द्धिनी, उदधि में निश्चल जल है।
प्राणप्रिय विदग्ध वियोग से, अति व्याकुल मेरा मन है।।
कुसुमायुध रति सा विरह, प्रिय मम तन में भर आया है।
उर- अंबर में नक्षत्र रहित,  रज़नी- तामस छाया है॥
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