तुम चुपके-चुपके आ जाना
अम्बर की चुनरी में अनगिनत, सितारे जब झिलमिलाते हों।
स्वर्णिम चांदनी जब अपने, सम्पूर्ण
यौवन से चमकती हो।।
चन्द्र-प्रभा से आहत , जब तुम्हारी रजस्वला मचलती हो ।
निर्झर से रिसता नीर, जब कल-कल स्वर में गाता हो ।।
फूलों का गुल गुलशन पराग, खुशबू से वसुधा नहलाता हो।
मधुमास प्रकृति के रग-रग में, बसंत बहारें महकाता हो ।
तुम चुपके-चुपके आ जाना, मन्मथ जब तुम्हें सताता हो ।।
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