रविवार, 2 अक्तूबर 2016

तुम चुपके चुपके आ जाना......


         तुम चुपके-चुपके आ जाना

अम्बर की चुनरी में अनगिनत, सितारे जब झिलमिलाते हों।
              स्वर्णिम चांदनी जब अपने,  सम्पूर्ण यौवन से चमकती हो।।
चन्द्र-प्रभा से आहत , जब तुम्हारी रजस्वला मचलती हो ।  
            निर्झर से रिसता  नीर,  जब कल-कल स्वर में गाता हो ।।
फूलों का गुल गुलशन पराग, खुशबू से वसुधा नहलाता हो।
             मधुमास प्रकृति के रग-रग में, बसंत बहारें महकाता हो ।
तुम चुपके-चुपके आ जाना, मन्मथ जब तुम्हें सताता हो ।।
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