रविवार, 2 अक्तूबर 2016

तेरे चहरे पे जब ये उदासी हो...........



तेरे चहरे पे जब ये उदासी हो


जानता हूँ कि तुम, मेरी मोहब्बत की प्यासी हो।
बहुत तड़पता हूँ मेरी जाँ, तेरे चहरे पे जब ये उदासी हो॥
हम चाह करके भी एक दूज़े को चाह ना सके ।
क़ातिल ज़माने की निग़ाहों को भा ना सके ।।
तेरे प्यार की तड़प का सागर, बर्फ का पठार बन गया है।।
सह-सह कर दिल ज़ख्म, दर्दों का आवास बन गया है॥
क्या कहूँ ये निस्पृह दिल, मोहब्बत को नहीं समझते हैं।
सुख-दुःख के साथी प्यार को वासना का नाम देते है॥
नाम क्या दूँ इस जहाँ को, जिसकी संवेदनायें सियासी हो ॥
बहुत तड़पता हूँ मेरी जाँ, तेरे चहरे पे जब ये उदासी हो॥
     
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